महेंद्र भट्ट ने किया ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का समर्थन, बोले विकास में बार-बार लगने वाला ब्रेक अब रुकेगा

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद महेंद्र भट्ट ने “एक राष्ट्र, एक चुनाव” विधेयक को विकसित भारत के निर्माण की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम बताया है. उन्होंने कहा कि यह विचार नया नहीं है. बल्कि भारतीय लोकतंत्र की पुरानी परंपरा है, जिसे अब फिर से स्थापित करने का सही समय आ गया है.

महेंद्र भट्ट ने किया ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का समर्थन

महेंद्र भट्ट ने कहा कि पीएम मोदी ने देशहित को प्राथमिकता देते हुए इस विषय को आगे बढ़ाया है. प्रधानमंत्री के नेतृत्व में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित उच्च स्तरीय समिति ने विधेयक के हर पहलू पर व्यापक विचार-विमर्श किया और रिपोर्ट सौंपी. समिति ने 62 राजनीतिक दलों से राय मांगी, जिनमें से 32 ने इस प्रणाली का समर्थन किया, जबकि 15 ने विरोध जताया.

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महेंद्र भट्ट ने बताया कि समिति ने चार पूर्व मुख्य न्यायाधीशों, नौ हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीशों, चुनाव आयुक्तों, बार काउंसिल, फिक्की, एसोचैम और जनता से भी सुझाव लिए. इनमें से 83 प्रतिशत लोग इस विधेयक के पक्ष में थे. भट्ट ने कहा कि हर छह महीने में होने वाले चुनावों से विकास योजनाएं प्रभावित होती हैं, सरकारी मशीनरी उलझती है और देश को आर्थिक नुकसान होता है.

“एक राष्ट्र, एक चुनाव से बचेगा समय : भट्ट

भट्ट ने कहा कि 2024 के लोकसभा चुनावों में ही 1 लाख करोड़ रुपये खर्च हुए, जबकि एक साथ चुनाव होने पर 12 हजार करोड़ की बचत संभव है. इतना ही नहीं GDP में 1.5% की वृद्धि भी हो सकती थी, जो लगभग 4.5 लाख करोड़ के बराबर है. महेंद्र भट्ट ने कहा कि लगातार चुनावों के चलते स्कूल बंद होते हैं, शिक्षक चुनाव ड्यूटी में लगते हैं और आम आदमी को परेशानियों का सामना करना पड़ता है. ऐसे में यह विधेयक एकीकृत प्रणाली स्थापित कर इन सभी समस्याओं का समाधान ला सकता है.

महेंद्र भट्ट ने किया कांग्रेस और INDI गठबंधन पर हमला

कांग्रेस और INDI गठबंधन पर हमला करते हुए कहा कि जिन पार्टियों ने 1952 से 1967 तक इसी प्रणाली के तहत चुनाव लड़े और जीते, वे आज विरोध कर रही हैं. उन्होंने कांग्रेस पर धारा 356 के दुरुपयोग से बार-बार चुनी हुई सरकारों को गिराने और देश को चुनावी दलदल में फंसाने का आरोप लगाया. भट्ट ने याद दिलाया कि 2015 में कांग्रेस नेता ई.एम. नचियप्पन की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति ने इस प्रणाली को व्यावहारिक बताया था.

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