Chamoli Avalanche: उत्तराखंड के चमोली जनपद के माणा गांव में बीते शुक्रवार यानी 28 फरवरी को बड़ा हादसा हुआ। एवलांच की चपेट में आने से 54 मजदूर दब गए। सेना आईटीबीपी और अन्य दलों को मजदूरों को बाहर निकालने के लिए लगाया गया। हालांकि अब रेस्क्यू अभियान पूरा हो गया है। जिसमें 54 में सें 46 श्रमिकों को जिंदा बाहर निकाला गया। तो वहीं इस हादसे में आठ श्रमिकों की जान चली गई। हालांकि अब सवाल ये खड़ा हो रहा है कि क्या पुरानी परंपरा का पालन कर इस हादसे को होने से बचाया जा सकता था?
चमोली के माणा पास पर हुई ये घटना (Chamoli Avalanche)
चमोली के माणा पास पर हुए एवलॉन्च से आठ श्रमिकों की मौत हो गई। ऐवलॉच या हिमस्खलन तब होता है जब किसी पहाड़ या ढलान पर बर्फ तेजी से नीचे गिरती है और इस बर्फ के साथ साथ पत्थर मिट्टी जैसी चीजें भी नीचे आते हैं जिससे भारी तबाही होती है। एवलॉन्च, बर्फबारी, ग्लोबलवार्मिंग, भूकंप, तेज शोर या इंसानी गतिविधियों की वजह से हो सकता है। उत्तराखंड में एवलॉन्च की ये पहली घटना नहीं है इससे पहले भी यहां कई एवलॉन्च आए हैं।
- 2008 में कालिंदी पास में भी एवलॉन्च हुआ जिसमें नौसेना के 5 पर्वतारोहियों सहित 6 लोगों की मौत हुई थी
- 2012 में वासुकी ताल के पास एवलॉन्च से 5 पर्यटकों की मौत हो गई
- 2019 में नंदा देवी की चोटी पर एवलांच हाँ जिसमें विदेशी पर्वतारोहियों की मौत की खबर आई
- 2021 में त्रिशूल चोटी पर एवलॉन्च हुआ जिसमें 9 पर्यटकों की मौत हो गई
- 30 जून 2024 को केदारनाथ के गांधी सरोवर में एवलॉन्च हुआ
चमोली एवलॉन्च से 54 मजदूर बर्फ में दब गए
ऐसे में अब 28 फरवरी 2025 को माणा के गांव में एवलॉन्च हुआ(Chamoli Avalanche) और वो मजदूरों के टीनशेड कैंप पर आकर गिरा। वहां सीमा सड़क संगठन BRO द्वारा बनाई जा रही सड़क पर काम कर रहे 54 मजदूर दब गए। ये मजदूर बाहरी राज्यों से यहां काम करने आए थे।
जम्मू कश्मीर, हिमाचल और उत्तराखंड समेत कई हिमालयी राज्यों में वक्त-वक्त पर एवलॉन्च होते रहते हैं। ऊंचाई पर रहने वाले लोग इस खतरे को अच्छे से समझते हैं जिस वजह से वो लोग पारंपरागत रुप से सर्दियों में गांव खाली कर निचले इलाकों में आकर रहने लगते हैं।
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क्या पुरानी परंपरा बचा सकती थी हादसा?
लेकिन यहां काम करवा रही कंपनी ने इस बात को नजरअंदाज कर दिया। जिसका खामियाजा इन आठ मजूदरों ने अपनी जान देकर दिया। राज्य में ऑरेंज अलर्ट और हिमस्खलन की आशंका के बावजूद मजदूर यहां काम कर रहे थे। 7 फरवरी 2021 को जोशीमठ के तपोवन क्षेत्र में रैणी गांव के पर ग्लेशियर फटने से भारी तबाही मची थी।
जिसमें कई लोगों की जान चली गई और कई लोगों का तो आजतक पता भी नहीं लग पाया है। 2023 में उत्तरकाशी के सिल्कियारा टनल हादसे में भी इसी तरह की लापरवाही देखने को मिली। जब निर्माणाधीन सुरंग में भूस्खलन से 41 मजदूर 17 दिनों तक फंसे रहे थे।
अब सवाल ये है की आखिर ये कंपनियां कब तक ऐसी लापरवाही करती रहेंगी। बिना पहाड़ों की भौगोलिक स्थिति को जाने समझे यहां कब तक काम करवाया जाएगा।