देहरादून। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में मेट्रो चलाने का सपना सात साल बाद भी अधूरा है। 2017 में शुरू हुआ नियो मेट्रो प्रोजेक्ट अब तक केवल बजट खर्च करने का जरिया बनकर रह गया है। केंद्र सरकार की चुप्पी और राज्य सरकार के असमंजस के चलते यह प्रोजेक्ट लगातार देरी का शिकार हो रहा है।
केंद्र की चुप्पी, राज्य सरकार के पाले में गेंद
नियो मेट्रो के संचालन को लेकर केंद्र सरकार की ओर से कोई स्पष्टता न होने के बाद, अब पूरी जिम्मेदारी राज्य सरकार पर आ गई है। प्रोजेक्ट की फंडिंग को लेकर पब्लिक इन्वेस्टमेंट बोर्ड (PIB) के पास मामला भेजा गया है, लेकिन अभी तक कोई ठोस फैसला नहीं लिया जा सका है।
80 करोड़ खर्च, लेकिन जमीन पर काम शून्य
वित्त विभाग के अनुसार, मेट्रो प्रोजेक्ट पर अब तक 80 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। इसमें 35 करोड़ रुपये का आधिकारिक बजट और विदेश यात्राओं तथा रिपोर्ट तैयारियों पर खर्च की गई अतिरिक्त राशि भी शामिल है। इनमें कॉम्प्रिहेंसिव मोबिलिटी प्लान तैयार करने से लेकर दो बार विदेश दौरे तक के खर्च शामिल हैं।
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फिजूलखर्ची पर वित्त विभाग की चिंता
राज्य के वित्त विभाग ने प्रोजेक्ट को अत्यधिक महंगा बताया है। उनकी चिंता जायज भी है क्योंकि मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन के प्रशासनिक खर्च और अन्य तैयारियों में भारी राशि खर्च हो रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि मेट्रो प्रोजेक्ट को अधर में लटकाने से राज्य की वित्तीय स्थिति पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।
क्या मेट्रो का सपना होगा पूरा?
सात साल के बाद भी देहरादून में मेट्रो का सपना हकीकत से कोसों दूर है। लगातार देरी और बढ़ते खर्च से प्रोजेक्ट की उपयोगिता पर सवाल खड़े हो रहे हैं। अब देखना यह है कि राज्य सरकार इसे साकार करने की दिशा में ठोस कदम उठाती है या नहीं।
क्या देहरादून मेट्रो का सफर कभी शुरू होगा, या यह केवल एक कागज़ी सपना बनकर रह जाएगा? जानने के लिए जुड़े रहें!
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