उत्तराखंड एसटीएफ (साइबर पुलिस स्टेशन गढ़वाल रेंज) ने एक राष्ट्रीय घोटाले का नागपुर में भंडाफोड़ किया है. आरोपी नए सिम कार्ड जारी करने के लिए लोगों का बायोमेट्रिक लेते थे. इसके बाद सोशल मीडिया साईट्स में विज्ञापनों के माध्यम से ऑनलाईन ट्रेडिंग कर अधिक मुनाफे का लालच देकर ठगी को अंजाम देते थे.
ऑनलाइन ट्रेडिंग के नाम पर धोखाधड़ी
हाल ही में देहरादून में एक पीड़ित ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, जिसमें बताया गया कि उसे टेलीग्राम पर एक ऑनलाइन ट्रेडिंग बिजनेस का विज्ञापन मिला. जब उसने उस विज्ञापन पर क्लिक किया, तो उसे एक अज्ञात व्हाट्सप्प ग्रुप में जोड़ा गया. उस ग्रुप में पहले से जुड़े लोगों ने उसे अपने लाभ के स्क्रीनशॉट शेयर करके झांसा दिया और ऑनलाइन स्टॉक मार्केट में निवेश करने के लिए प्रेरित किया.
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मुनाफे का लालच देते थे आरोपी
शिकायतकर्ता ने लगभग 23 लाख रुपये विभिन्न बैंक खातों में जमा कर दिए, जो आरोपियों ने धोखाधड़ी से हासिल किए थे. इस गंभीर मामले की जानकारी मिलते ही एसटीएफ एसएसपी नवनीत सिंह ने एक टीम गठित कर आरोपियों की गिरफ़्तारी के निर्देश दिए. साइबर क्राइम पुलिस ने संबंधित बैंकों और सर्विस प्रदाताओं से जानकारी जुटाई. जांच में पता चला कि आरोपी लोग अन्य व्यक्तियों के खातों का उपयोग कर रहे थे और उन्हें कमीशन आधारित खाते के रूप में संचालित कर रहे थे. इस प्रक्रिया में दो महिला आरोपी पुष्पा बारापात्रे और यदम्मू सुल्तान, की पहचान की गई.
आयुष्मान कार्ड बनवाने का झांसा देकर सिम कार्ड एक्टिवेट कराती थी महिलाएं
जांच में यह भी पता चला कि यदम्मू सुल्तान का बेटा, राजू सुल्तान, फिलीपींस में रहता है और वह इस गिरोह का मास्टरमाइंड है. दोनों महिलाएं लोगों के बायोमेट्रिक डेटा का इस्तेमाल करके आयुष्मान कार्ड बनवाने का झांसा देकर सिम कार्ड एक्टिवेट करती थीं, जिसे राजू को भेजा जाता था. पुलिस ने इन दोनों महिला महिलाओं की तलाश शुरू की और गिरफ़्तारी के लिए नागपुर में एक टीम को भेजा. पुलिस टीम ने तकनीकी जांच के आधार पर महत्वपूर्ण साक्ष्य एकत्र किए और आरोपियों को धारा 41(ए) सीआरपीसी के तहत नोटिस दिया. तलाशी के दौरान पुष्पा बारापात्रे से एक मोबाइल फोन बरामद हुआ, जिसमें कई बैंक खातों और सिम कार्ड की जानकारी थी.
कई लोगों के बायोमेट्रिक डेटा का इस्तेमाल कर चुके हैं आरोपी
पुलिस ने बताया कि आरोपियों द्वारा किए गए अपराध का तरीका काफी चालाकी से तैयार किया गया था. वे सोशल मीडिया के माध्यम से निवेश के झांसे में लोगों को लाते थे और फिर फर्जी स्क्रीनशॉट भेजकर उन्हें और अधिक निवेश के लिए प्रेरित करते थे. जब भी कोई पीड़ित अपनी राशि निकालने की कोशिश करता, तो वे उन्हें कुछ छोटी धनराशि भेज देते, जिससे पीड़ितों को धोखाधड़ी का अंदाजा नहीं होता. आरोपियों ने यह भी स्वीकार कि उन्होंने सैकड़ों सिम कार्ड सक्रिय किए हैं और धोखाधड़ी के लिए कई लोगों के बायोमेट्रिक डेटा का इस्तेमाल किया. उनके बैंक खातों में लाखों रुपये का लेनदेन पाया गया है, और इन खातों का इस्तेमाल देश भर में साइबर अपराधों के लिए किया गया.