हरिद्वार: करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र मानी जाने वाली गंगा, हरिद्वार में स्नान योग्य तो है लेकिन पीने लायक नहीं। उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, गंगाजल की शुद्धता बी श्रेणी में है। इसका मतलब यह है कि गंगाजल नहाने के लिए तो सुरक्षित है, लेकिन इसे बिना ट्रीटमेंट के पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है।
गंगा में बढ़ रहा अपशिष्ट और सीवरेज का जल
पीसीबी की मासिक जांच में सामने आया है कि हरिद्वार के 12 अलग-अलग स्थानों से लिए गए गंगाजल के नमूने कहीं भी पीने योग्य नहीं पाए गए। इसमें हरकी पैड़ी से लेकर सुल्तानपुर के जसपुर तक के इलाके शामिल हैं। गंगा में लगातार गिरने वाला शोधित और गैर-शोधित सीवरेज जल, साथ ही अपशिष्ट, गंगाजल की गुणवत्ता को बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैं।
श्रद्धालु बन रहे गंगा की स्वच्छता के लिए चुनौती
हर साल लाखों श्रद्धालु हरिद्वार आते हैं और गंगा में स्नान करने के बाद गंगाजल अपने साथ ले जाते हैं। लेकिन, इन्हीं श्रद्धालुओं द्वारा छोड़ा गया कूड़ा-करकट गंगा को मैला कर रहा है। कांवड़ मेले के दौरान अकेले इस साल 11 हजार मीट्रिक टन कूड़ा गंगा घाटों पर छोड़ा गया, जिससे बड़ी मात्रा में गंगा का जल दूषित हुआ।
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सीवरेज ट्रीटमेंट में खामियां बढ़ा रहीं गंगा की समस्या
हरिद्वार में जल निगम के अनुसार, सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) की क्षमता से अधिक जल आने पर कई बार बिना शोधित सीवरेज जल गंगा में छोड़ना पड़ता है। इससे गंगाजल में फिकल कोलिफार्म (मल-मूत्र) और अन्य हानिकारक तत्वों की मात्रा बढ़ रही है।
बी श्रेणी का जल स्वास्थ्य के लिए खतरा
डॉक्टरों के मुताबिक, बी श्रेणी का जल नहाने के लिए सुरक्षित हो सकता है, लेकिन इसे पीने से डायरिया, टायफाइड और गैस्ट्रोइंटेराइटिस जैसी बीमारियां हो सकती हैं। इसलिए हरिद्वार के गंगाजल को बिना ट्रीटमेंट के पीने से बचना चाहिए।
गंगा जल की गुणवत्ता सुधारने की जरूरत
गंगा की पवित्रता और शुद्धता बनाए रखने के लिए जरूरी है कि सीवरेज और अपशिष्ट प्रबंधन पर सख्ती की जाए। इसके अलावा, गंगा में गिरने वाले शोधित और गैर-शोधित जल की मात्रा को नियंत्रित करना बेहद जरूरी है।