बात सन 1962 की है जब चीन ने पूरी तैयारी के साथ अचानक भारत पर हमला कर दिया चीन द्वारा अचानक किए गए हमले के लिए देश तैयार नहीं था वही असम के चीन बॉर्डर में भारत की पायनर कंपनी में एक 18 वर्ष का युवा सिपाही हयाद सिंह मेहता तैनात थे। हयाद सिंह मेहता ने देश की रक्षा के लिए आखरी गोली तक दुश्मनों का सामना किया। छह महीने चीन की जेल में भी रहे। अब सालों बाद हयाद सिंह मेहता ने उस समय को याद किया है।
1962 युद्ध के जांबाज योद्धा हयाद सिंह मेहता
हयाद सिंह मेहता आज 84 वर्ष के हो चुके हैं। भारत-चीन युद्ध को याद करते हुए उन्होंने अपना अनुभव शेयर किया है। आज भी लोहाघाट के कलीगांव निवासी हयाद सिंह मेहता में वही देशभक्ति का जज्बा बरकरार है। उन्होंने 1962 की लड़ाई का हाल सुनाते हुए कहा वो पाईनर कंपनी में नए-नए भर्ती हुए थे। ट्रेनिंग के बाद उनकी पोस्टिंग असम के चीन बॉर्डर में कर दी गई। उनकी कंपनी में 100 जवान तैनात थे।
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साल 1962 में चीन ने अचानक भारत मे हमला कर दिया और चीनी सैनिकों ने जिनकी तादाद एक हजार से भी अधिक थी। अचानक उनकी पोस्ट पर जोरदार हमला हुआ और भारतीय सेना के पास गोला बारूद काफी कम था। लेकिन इसके बावजूद भी उन्होंने लोग काफी बहादुरी से लड़े। लेकिन चीनी सैनिकों की तादाद काफी ज्यादा थी उन्होंने कहा काफी भयंकर लड़ाई लड़ी।
छह महीने चीन में काटी सजा फिर लौटे अपने वतन
हयाद सिंह मेहता ने बताया कि हम लोगों ने काफी ज्यादा चीनी सैनिकों को मार गिराया था। लेकिन हमारी पलटन के भी कई जवान शहीद हो गए थे और कई घायल हुए। कई घंटे की लड़ाई के बाद हमारा गोला बारूद खत्म हो गया था और हमारे पास खाने के लिए कुछ नहीं था। हाईकमान ने पलटन को पोस्ट छोड़ने का आर्डर दिया। इसके बाद मजबूरी में हमें पोस्ट छोड़नी पड़ी।
उन्होंने बताया वो आठ सैनिक थे जो 14 दिन तक भूखे प्यासे जंगलों में भटकते रहे। इस दौरान उन लोगों के द्वारा जंगलों में घास पत्ते खाकर किसी तरह काम चलाया गया। अपने घर छोड़कर भाग चुके लामा लोगों के घरों में बचा हुआ राशन खाकर पेट भरा। लेकिन एक दिन जब वे लोग जंगलों में भटक रहे थे तभी चीन के तीन सौ से भी ज्यादा सैनिकों ने उनको घेर लिया और उन्हें बंधक बनाकर चीन लेकर गए।
हयाद सिंह मेहता और सभी सैनिकों की ऐसे हुई वतन वापसी
जब वो चीन पहुंचे तो वहां उन्होंने देखा कि चार हज़ार से भी अधिक भारतीय सैनिकों को बंदी बनाया गया था। चीनी अधिकारियों के द्वारा सभी भारतीय सैनिकों को दो सौ की टुकड़ियों में रखा गया था। इस दौरान सभी भारतीय सैनिकों से चीनी अधिकारियों के द्वारा भारतीय सेना के बारे में पूछताछ की गई लेकिन किसी भी भारतीय सैनिक के द्वारा अपना मुंह नहीं खोला।
हयाद सिंह मेहता ने बताया लगभग 6 महीने उन्हें अपने साथियों के साथ चीन की कैद में रहना पड़ा। बाद में दोनों देशों के बीच हुए समझौते के बाद उन्हें छोड़ा गया। उन्होंने बताया उनके घर वालों को भी एक महीने बाद पता चला था कि वो चीनी सेना के चंगुल में फंस चुके हैं।
84 साल की उम्र में आज भी है वही देशभक्ति का जज्बा
हयाद सिंह मेहता आज के हो चुके हैं उनमें अभी भी वही देशभक्ति का जज्बा भरा हुआ है। उनका कहना है कि अगर उनकी पलटन के पास पर्याप्त मात्रा में गोला बारूद होता तो वो चीनी सेना को पोस्ट में घुसने तक नहीं देते। लेकिन फिर भी हमारी पलटन बहादुरी से लड़ी और कई चीनियों को मौत के घाट उतारा। हर सैनिक अंतिम गोली तक बहादुरी के साथ लड़ा। इस लड़ाई मैं उनके कई साथी शहीद हुए तो कई घायल हुए उन्होंने कहा लड़ाई काफी भयंकर थी। हयाद सिंह ने कहा अगर आज भी उन्हें मौका मिले तो बॉर्डर पर लड़ने को तैयार हैं।