हरिद्वार: Pollution in Ganga
सात जुलाई 2016 को बड़े दावों और वादों के साथ हरिद्वार में ‘नमामि गंगे’ परियोजना की शुरुआत हुई थी। तत्कालीन केंद्रीय मंत्री उमा भारती और संत समाज की उपस्थिति में इस महत्वाकांक्षी योजना को लॉन्च किया गया। इसका उद्देश्य गंगा को निर्मल और अविरल बनाना था। लेकिन आठ साल बाद भी गंगा की स्थिति ज्यों की त्यों बनी हुई है।
हरिद्वार में हजारों करोड़ खर्च, पर नतीजा सिफर
परियोजना के तहत हरिद्वार में नए एसटीपी (सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट), सीवेज पंपिंग स्टेशन का निर्माण और उच्चीकरण, नई सीवरेज पाइप बिछाने और एसटीपी के शोधित जल को सिंचाई के लिए खेतों में भेजने जैसे कार्य होने थे। हजारों करोड़ रुपये खर्च किए गए, लेकिन गंगा का पानी न केवल प्रदूषित रहा, बल्कि प्रदूषण स्तर भी बढ़ता गया।
उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट से हुआ खुलासा
उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक गंगा का पानी बिना ट्रीटमेंट के पीने योग्य नहीं है। नमामि गंगे के कई महत्वपूर्ण कार्य लापरवाही, अनदेखी और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गए।
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एनएमसीजी ने दिए जांच के आदेश
राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) ने परियोजना में भ्रष्टाचार और देरी के लिए जिम्मेदार अधिकारियों को चिह्नित करने और उनके खिलाफ कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं। स्टेट मिशन फॉर क्लीन गंगा (एसपीएमजी) से जल्द जांच रिपोर्ट मांगी गई है।
क्या हुआ था वादा?
- गंगा को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए 20,000 करोड़ रुपये का बजट तय।
- हरिद्वार में नई सीवरेज लाइन, उन्नत एसटीपी और शोधित पानी के उपयोग की योजना।
- गंगा के अविरल प्रवाह को सुनिश्चित करने का संकल्प।
क्या है हकीकत?
- गंगा का पानी पीने और स्नान के योग्य नहीं।
- हरिद्वार में सीवरेज प्रबंधन में अनियमितता।
- परियोजना के तहत कई कार्य अधूरे।
नमामि गंगे परियोजना के वादे आज भी अधूरे हैं। करोड़ों रुपये खर्च होने के बावजूद गंगा की पवित्रता और स्वच्छता सपना ही बनी हुई है। क्या इस परियोजना का उद्देश्य पूरा होगा, या गंगा यूं ही ‘राम तेरी गंगा मैली’ बनी रहेगी?