देहरादून। उत्तराखंड में बाघों की मौत के मामलों में इस साल 61.90% की कमी दर्ज की गई है, जो राज्य के वन्यजीव संरक्षण प्रयासों के लिए एक सकारात्मक संकेत है। पिछले साल 21 मौतों के मुकाबले, इस साल अब तक केवल आठ बाघों की मौत के मामले दर्ज हुए हैं।
शिकार पर रोक और बेहतर संरक्षण
नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (NTCA) के अनुसार, 2023 में बाघों की मौत का अंतिम मामला सितंबर में सामने आया। इस साल शिकार का कोई मामला रिपोर्ट नहीं हुआ, जबकि 2022 में तीन बाघों की खाल बरामद की गई थी। शिकार के मामलों में कमी को बेहतर पेट्रोलिंग और मॉनिटरिंग का नतीजा माना जा रहा है।
प्रमुख वन संरक्षक (वन्यजीव) रंजन मिश्रा के अनुसार, “बाघों के वास स्थल में सुधार और जंगलों में भोजन की उपलब्धता बढ़ाने के प्रयास किए गए हैं। इससे बाघ जंगल से बाहर कम आ रहे हैं। इको-टूरिज्म से जुड़े व्यक्ति भी संरक्षण में मदद कर रहे हैं।”
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12 सालों में 132 मौतें, देश में चौथे स्थान पर
2012 से लेकर सितंबर 2024 तक, उत्तराखंड में 132 बाघों की मौत हुई है। यह आंकड़ा देश में चौथे स्थान पर है। मध्य प्रदेश में बाघों की मौत के सबसे अधिक 365 मामले दर्ज हुए हैं।
वन विभाग की चुप्पी
शिकार के स्थानों का पता लगाने में वन विभाग अब तक असफल रहा है। 2022 और 2023 में बरामद की गई बाघों की खालों के शिकार स्थलों का खुलासा नहीं किया गया है।
संरक्षण प्रयास और भविष्य की योजनाएं
- बाघों के वास स्थलों में सुधार: जंगलों में भोजन और सुरक्षा को प्राथमिकता दी गई है।
- मॉनिटरिंग और पेट्रोलिंग: वन विभाग ने निगरानी को और मजबूत किया है।
- इको-टूरिज्म से सहयोग: स्थानीय लोगों को संरक्षण में शामिल किया गया है।
विशेषज्ञों की राय
वन्यजीव विशेषज्ञों का मानना है कि यदि संरक्षण के ये प्रयास जारी रहे, तो उत्तराखंड जल्द ही बाघों के संरक्षण में देश के अग्रणी राज्यों में शामिल हो सकता है।